शनिदेवजी के चार चालीसे
1.सिद्ध शनि चालीसा।
छन्द- सुख मूल गुरु चरण-रज, सुखद अलौकिक धुल।
मन के याप विकार को, नासै तुरत समूल ।।
द्रु:ख दाता शनिदेव की, कहूं चालिसा सिद्धा ।
शनि कृपा से दूर हों, ताप कष्ट अरु शूल।।
मन के याप विकार को, नासै तुरत समूल ।।
द्रु:ख दाता शनिदेव की, कहूं चालिसा सिद्धा ।
शनि कृपा से दूर हों, ताप कष्ट अरु शूल।।
2. श्री शनि चालीसा
दोहा - जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाश निहाल।।
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।
3. श्री ऩवग्रह चालीसा
दोहा श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित शिरनाय।
नव-ग्रह चालीसा कहत, शारद होहु सहाय।।
जय जय रवि शशि भौम बुद्ध, जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह, करहु अनुग्रह अाज।।